आज का विषय भी यही।
लाल किताब के अनुसार ऐसा जातक या ऐसा व्यक्ति जिस की जन्म कुंडली में शुक्कर ख़ाना नंबर 5 में हो तो ऐसे जातक को लव-मैरिज़ से परहेज़ रखना है बेहतर है या नहीं।
लाल किताब में शुक्कर ख़ाना नंबर 5 वाले जातक को अपने घर वालों की मर्ज़ी की खिलाफ़ जा कर शादी करने से मना किया गया है, लेकिन प्रश्न पैदा होता है, कि ऐसा क्यूं लिखा गया है ?
आज की पोस्ट में यही जानने का प्रयास किया जाएगा। लाल किताब में शुक्कर ख़ाना नंबर 5 में लिखा गया है कि
“अगर आशिक़ दुनिया हुआ तो फंसे हुए पतंग (शुक्र की पतंग रेखा-आसमानी इन्द्र धनुष शक्ल की रेखा {शुक्र वल्य} एक तरफ गुरू व शनि की उंगली में फसा दुसरी तरफ बुध व सुरज की उंगली में फंसा हुआ / जिसे हम हस्त रेखा में शुक्र वल्य कहते हैं) की तरह किस्मत का हाल होगा।
लेकिन अगर सूफ़ी हुआ तो भव सागर से पार होगा।
वर्ना, एक को क्या रोते, यहां तो आवा ही ऊत ही गया।
ख़ाना न: 5 पक्का घर गुरू का और इसका मालिक सूरज, अब यहां शुक्र, गुरू व सूरज के घर बैठा है। पर अब यहां आशिक़ी इतनी दूर है,जितनी लम्बी खजूर है वाली हो गई, क्योंकि गुरु तो ठहरा त्यागी साधु बाबा,
अब साधु बाबा का तुम्हारी (टेवे वाला) आशिकी में मदद करना खुद चोले में दाग लगवाने वाली बात है। गुरू ऐसा हरग़िज न चाहेगा।
सूरज (पिता) तो वैसे ही आशिकी बदचलनी के खिलाफ है और शुक्र का ख़ासम ख़ास दोस्त शनि का तो वैसे ही सूरज से 36 का आंकड़ा है। शनि सूरज के घर कोई दख़लअन्दाज़ी करेगा नहीं। अब शुक्र करे तो करे,
तो शुक्र ने सोचा क्यों “अपना हाथ जगननाथ; आपण हथ्थीं आपणा आपे ही काज सवारी” वाला काम कर लें। सो शुक्र ने आशिक़ी का रास्ता अख्तियार करते हुए सूरज के घर में सूरज के असूलों से बगावत कर दी (मन मर्जी से शादी कर ली व रंगरेलीय़ां मनाने लगा), सूरज की आंखों तले हुई इस चोरी व सीनाजोरी ने सूरज को शर्मिन्दा कर दिया व सूरज (पिता) से ये देखना सहन न हुआ।
सूरज ने सोचा था कच्ची उड़ती फिरती मिट्टी (शुक्र) अब मेरे घर आकर आग में तप कर टिक गई, पर जब शुक्र ने आंधी का रूख अपनाया (आशिकी व बगावत करी) सूरज ने सिर नीचे कर लिया (दिन दिहाड़े इश्क़मिजाज़ी, दिन में संभोग सुख को अपने घर देख कर)-आंखे मूंद ली/अस्त हो गया/मंदा हो गया।
अब सूरज मंदा होने का मतलब ख़ाना नम्बर 1 (पक्का घर सूरज) ग्रहों पर बुरा असर पड़ना भी हुआ। इधर गुरू ने भी शुक्र की इस बदचलनी को अपने पक्के घर में होते देख कर आंखे फेर/टेड़ी की तो ख़ाना नंबर 9 के ग्रहों पर मंदा असर पड़ा।
मसलन “जो ग्रह पहले नौवें अन्धा काना हो” ख़ाना 1-9 के ग्रह अंधे काने हो गए। टेवे वाला बेऔलाद तो न होगा पर औलाद (केतु) मददगार न होगी। शुक्र की मनमानी की वजह से सूरज (पिता)-गुरु (गुरू के रिस्तेदार राहु-ससुराल, मंगल-बड़ा भाई व ताऊ व केतु (गुरू का चमचा बना रहा)- सब मंदे हुए…
इसे कहते है यहां एक को क्या रोते हो, सारा आवा ही ऊत गया। अब यहां टेवे वाले (शुक्र 5) को शनि मित्र (कारोबार मंदा न होगा) की मदद मिलती रहेगी।
पर कहते है न गुरू बिना गत नही शाह (मालिक) बिन पत(इज्जत) नहीं। आदमी के सब ग्रह ठीक हों, अगर सूरज (सबका मालिक) मंदा हो तो कोई न कोई परेशानी बनी रहती है, सो घर के मालिक पिता (सूरज) को मनाना बहुत जरुरी है। अब यहां सूरज (पिता) को मनाने के चन्द्र (माता) की मदद निहायत जरूरी है….पर पहले खुद का चाल चलन ठीक करना होगा – इश्क मिज़ाजी छोड़ना होगा। Additional (जब शुक्र ने सूरज के घर (ख़ाना नंबर 5) में मन मरजी (आशिक़ी) से शादी किया तो पिता (सूरज) की बेइज्जती (दिन के उजाले किया संभोग तो कटे पर नमक छिडकना -शुक्र आशिक तो ऐसा करेगा ही) हुई, सूरज का सिर झुका/अस्त मंदा हुआ-सूरज की मर्यादा व गुरु की परम्परा दोनो का हनन हुआ- सूरज गुरू मंदे की वजह से दोनो के घर (ख़ाना नंबर 1 व 9) बैठे ग्रह भी बरबाद हुए व पक्का घर मंगल (खाना नंबर 1)-ख़ाना नंबर 8 मित्र शनि (कारोबार धन) तो ठीक ही रहा पर ख़ाना नंबर 12 का गुरू+राहु (ससुराल मंदा हुआ) ख़ाना भी जला।
शुक्र की बदचलनी ने कितने घर बर्बाद/आवा ही ऊत गया। पर अब पिता सूरज को मनाने के लिए माता चंदर (ख़ाना नंबर 4) की मदद चाहिये क्योकि बहु/जवांई (बेटा-बेटी का घर बसता को देख कर) पर सबसे ज्यादा मां ही खुश होती है/मां ममता के वश हो कर सारी बातें भूल जाती है। बाप को मनाने के मां (चंदर)-बुध (बहन बुआ मौसी) मदद ही काम आयेगी।)
फिर मिलते है कुछ नया ले कर